1)
सूर्य अस्त हो रहा था। पक्षी चहचहाते हुए अपने-अपने नीड़ की ओर जा रहे थे। गाँव की कुछ स्त्रियाँ पानी लेने के लिए घड़े लेकर कुएँ की ओर चल पड़ीं। पानी भरकर कुछ स्त्रियाँ तो अपने घरों को लौट गई परन्तु उनमें से चार, कुएँ की पक्की जगत पर बैठकर आपस में इधर-उधर की बातें करने लगीं। बातचीत करते-करते बात बेटों पर जा पहुँची। उनमें से एक की उम्र सबसे बड़ी लग रही थी। वह कहने लगी, "भगवान सबको मेरे बेटे जैसा बेटा दे। मेरा बेटा लाखों में एक है। उसका कंठ बहुत मधुर है। वह बहुत अच्छा गाता है। उसके गीत को सुनकर कोयल और मैना भी चुप हो जाती है। लोग बड़े चाव से उसका गीत सुनते हैं।"
2)
कुछ समय बाद जब वे सब बड़े सिर पर रखकर लौटने लगीं, तभी किसी गीत का मधुर स्वर सुनाई पड़ा। सुनकर पहली स्त्री बोली, "सुनी, मेरा हीरा गा रहा है। तुम लोगों ने सुना, उसका कंठ कितना मधुर है?" वह लड़का गीत गाता हुआ उसी रास्ते से निकल गया। उसने अपनी माँ की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इतने में दूसरी स्त्री का बेटा उधर से आता दिखाई दिया। दूसरी स्त्री उसे देखकर गर्व से बोली, "देखो, वह मेरा लाइला बेटा आ रहा है। शक्ति और सामर्थ्य में इसकी बराबरी कौन कर सकता है?" वह यह कह ही रही थी कि उसका बेटा भी उसकी और ध्यान दिए बिना ही निकल गया।
3)
चौथी स्त्री उसके बारे में बता ही रही थी कि उसका बेटा पास आ पहुँचा। अपनी माँ को देखकर वह रुक गया और बोला, "माँ, लाओ मैं तुम्हारा घड़ा पहुँचा दूँ।" मना करने पर भी उसने माँ के सिर से पानी से भरा घड़ा उतारकर अपने सिर पर रखा और घर की ओर चल पड़ा।
तीनों औरतें बड़े ही आश्चर्य से चौथी स्त्री के बेटे को देखती रहीं। एक वृद्ध महिला जो बहुत देर से इन औरतों के पीछे चलती हुई इनकी बातें सुन रही थी, पास आकर बोली "देखती क्या हो? यही 'सब्जा हीरा' है।"
4)
डॉ. विक्रम साराभाई का जन्म 12 अगस्त, सन् 1912 को अहमदावाद में हुआ था। उनका परिवार एक प्रतिष्ठित उद्योगपति परिवार था। पिता का नाम अम्बालाल तथा माता का नाम सरलादेवी था। विक्रम साराभाई आठ भाई-बहन थे। बाल्यकाल से प्रतिभावान विक्रम साराभाई के बचपन का यह प्रसंग उनके सफलता हासिल करने के बुलंद इरादे को दर्शाता है। जब वह 5-6 साल के थे, तो अपने परिवार के साथ शिमला गए। शिमला में उनके पिता श्री अम्बालाल के नाम ढेरों चिट्ठियाँ आती थीं। यह देखकर बालक विक्रम के मन में भी इच्छा हुई कि उनके नाम भी खूब सारे पत्र आएँ।
5)
पुराने जमाने में व्यापार का सामान लाने-ले जाने का काम बनजारे-करते थे। एक बनजारा था। वह अपने ऊँटों पर गाँवों का माल सामान लादकर शहरों में ले जाता था और वहाँ से मिसरी, गुड़-मसाले आदि भरकर गाँवों तक ले आता था। लाखों का व्यापार था उसका। इसीलिए लोग उसे लाखा बनजारा कहते थे। लाखा के पास एक सुंदर कुत्ता था। कुत्ता बड़ा वफादार था। रात को वह बनजारे के पड़ाव की रखवाली करता था, अगर चोर-लुटेरे पड़ाव की तरफ आते दिखाई देते थे तो कुत्ता भाँक-भौंक कर उन्हें दूर भगा देता था। बनजारा अपने कुत्ते की वफादारी से बहुत खुश था।
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