Saturday 23 March 2024

राजा का न्याय

 राजा का न्याय


           बहुत समय पहले, एक बड़े राज्य में राजा विक्रमादित्य नामक एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय राजा राज्य करते थे। उनके राज्य में सभी लोग सुखी और शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे, क्योंकि राजा विक्रमादित्य न्याय के मामले में किसी से भी समझौता नहीं करते थे।

          एक दिन, राज्य में एक अनोखा विवाद सामने आया। दो व्यापारी एक ही घोड़े के मालिकाना हक का दावा कर रहे थे। पहला व्यापारी दावा करता था कि घोड़ा उसका है क्योंकि उसने इसे पाला और पोषित किया है, जबकि दूसरा व्यापारी दावा करता था कि घोड़ा उसके पिता का था और उसके पिता के निधन के बाद, घोड़ा वैध रूप से उसका हो गया।

          यह विवाद राजा के सामने पेश किया गया। राजा विक्रमादित्य ने दोनों व्यापारियों की बातें ध्यान से सुनीं और फिर एक बुद्धिमान फैसला सुनाने का निर्णय लिया। उन्होंने दोनों व्यापारियों से कहा कि वे घोड़े को राजमहल के मैदान में ले आएं और घोड़े को छोड़ दें। फिर उन्होंने दोनों व्यापारियों से कहा कि वे घोड़े को अपने पास बुलाएं।

          घोड़ा कुछ क्षण के लिए चुपचाप खड़ा रहा, फिर उसने धीरे से उस व्यापारी की ओर चलना शुरू कर दिया जिसने उसे पाला और पोषित किया था। राजा विक्रमादित्य ने इसे देखा और मुस्कुराए, फिर उन्होंने फैसला सुनाया कि घोड़ा उस व्यापारी का होगा जिसके पास घोड़ा खुद चला गया था। उनका कहना था कि जीवन में जिससे हमें प्यार और देखभाल मिलती है, हमारा सच्चा साथी वही होता है।

         राजा के इस फैसले से न केवल विवाद का समाधान हुआ, बल्कि राज्य के लोगों को भी एक महत्वपूर्ण शिक्षा मिली। यह घटना राजा विक्रमादित्य की बुद्धिमत्ता और न्यायप्रियता का एक और उदाहरण बन गई।

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